भले ही मोदी सरकार ज्यादा बढ़ी हुयी ताकत के साथ दुबारा सत्ता में आई हो और वह आम जनता के मुद्दों को पीछे ढकेलने की हर कोशिश कर रही हो, उसे केवल 6 महीनों के भीतर ही मजदूरों के व्यापक गुस्से और विरोध का सामना करना पड़ा है. मजदूरों ने मोदी सरकार-2 के कदमों के खिलाफ संघर्षों का बिगुल बजा दिया है. 100 प्रतिशत विदेशी निवेश और निगमीकरण/निजीकरण के खिलाफ देशभर के डिफेंस कर्मियों ने 20 अगस्त से 5 दिनों की हड़ताल की, रेलवे कर्मी खासकर उत्पादन इकाइयों के कर्मी 100-दिनों के ऐक्शन प्लान के खिलाफ निरंतर आंदोलनरत हैं, कोयला मजदूरों ने 24 सितंबर को एक दिन की जबरदस्त हड़ताल की, बैंकों के विलय और निजीकरण के खिलाफ बैंक कर्मियों ने 22 अक्टूबर को एक दिन की देशव्यापी हड़ताल की. भारत पेट्रोलियम (बीपीसीएल) के कर्मियों ने 28 नवंबर को जोरदार देशव्यापी हड़ताल की. तेलंगाना में राज्य परिवहन कर्मियों ने निजीकरण के खिलाफ करीब डेढ महीने लंबी हड़ताल की. सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मियों के अलावा विभिन्न राज्यों में स्कीम, निर्माण, सफाई, फैक्टरी मजदूर हड़ताल समेत संघर्षों में उतरे हुए हैं. साथ ही, छात्र, किसान समेत अन्य तबके भी संघर्षों में उतरे हुए हैं.
चुनावी संघर्ष में भी जनता ने अपने विक्षोभ को दर्शा दिया है. हाल में हुए महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में जनता ने भाजपा की ताकत को बेहद घटा कर भाजपा सरकारों को झटका दिया है. इन प्रदेशों की आम जनता की असल समस्याओं को दरकिनार कर मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने खास तौर पर ‘कश्मीर विजय’ और पूरे देश में एनआरसी लागू करने के वादे को मुख्य चुनावी सवाल बनाते हुए जबरदस्त बहुमत पाने की उम्मीद की थी. और भी बड़ा झटका मोदी सरकार को जम्मू-कश्मीर के बीडीसी (ब्लॉक विकास परिषद्) चुनाव में लगा जिसमें जम्मू और लद्दाख जैसे इलाकों में, 370 हटाने पर भारी समर्थन हासिल करने की उम्मीद के बाद भी, भाजपा को दूसरे नंबर पर आना पड़ा और उसके खिलाफ खड़े हुए स्वतंत्र उम्मीदवारों (तमाम विपक्षी पार्टियों ने यहां चुनाव का बहिष्कार किया था) को लोगों ने अपना समर्थन दिया.
प्रतिरोध और संघर्षों की इस लहर को और मजबूत बनाना ही समय की मांग है. केवल और केवल जनता के संघर्षों से ही आजीविका और अधिकारों पर चल रहे मोदी-शाह सरकार के बुलडोजर को रोका जा सकता है. आइए, मोदी-शाह सरकार के छलभरे, सांप्रदायिक बंटवारे के मंसूबों को नाकाम करते हुए, आम जनता के रोजी-रोटी, मूलभूत अधिकारों और लोकतंत्र के जरूरी सवालों को जोरदार तरीके से सामने लाएं और 8 जनवरी 2020 की देशव्यापी हड़ताल को कामयाब बनाएं.
आइए, नये वर्ष, 2020 की शुरूआत मोदी शासन की विनाशकारी, सांप्रदायिक नीतियों के खिलाफ एकताबद्ध प्रतिरोध खड़ा करने के संकल्प के साथ करें.